*वास्तविक बात तो यह है कि यह जगत उत्पत्ति के पहले नहीं था और प्रलय के बाद नहीं रहेगा; इससे यह सिद्ध होता है कि यह बीच में भी एकरस परमात्मा में मिथ्या ही प्रतीत हो रहा है*
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अपनी इन्द्रियोंको वशमें न रखनेवाला पुरुष
नरक में गिरकर अपना सत्यानाश कर लेता है।
जैसे पतंगा रूपपर मोहित होकर आगमें कूद पड़ता है और जल मरता हैं।
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